नई दिल्ली. जांबाज हेड कॉन्स्टेबल दीपक दहिया पिस्टल से लगातार फायरिंग करने वाले एक दंगाई के सामने सीना तानकर डटे हुए थे. उस वक्त उनके हाथ में सिर्फ एक लाठी थी. दंगाई उनकी तरफ पिस्टल ताना हुआ था लेकिन दहिया उसके सामने डटे रहे, टिके रहे.
31 साल के दीपक दहिया हरियाणा के सोनीपत के रहने वाले हैं. वह 2010 में बतौर कॉन्स्टेबल दिल्ली पुलिस में भर्ती हुए थे. उन्होंने हेड कॉन्स्टेबल के एग्जाम को पास किया और फिलहाल वजीराबाद में ट्रेनिंग ले रहे हैं. उन्होंने बताया, ‘मैं मौजपुर चौक पर तैनात था. अचानक चीजें बदल गईं और माहौल बहुत हिंसक हो गया. लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाने लगे.
मैं हिंसा वाली जगह की ओर जैसे ही बढ़ा, गोली चलने की आवाज सुनी. मैंने देखा कि लाल शर्ट पहना हुआ एक शख्स पिस्टल चला रहा है. मैं तुरंत रोड के दूसरी तरफ लपका ताकि उसका ध्यान बंट सके.’
दहिया बताते हैं कि पुलिसकर्मियों को यही ट्रेनिंग दी जाती है कि ऐसी स्थितियों में वह आम लोगों की जिंदगी को खुद से ऊपर रखें. उन्होंने बताया, ‘वह आगे बढ़ रहा था…मैं उसका ध्यान बंटाने के लिए उसकी तरफ बढ़ा…मैं नहीं चाहता था कि कोई अन्य उसके रास्ते में आए. मेरी प्राथमिकता यह सुनिश्चित करने की थी कि कोई हताहत न हो.’ यह पूछने पर कि उस वक्त आपके दिमाग में क्या चल रहा था तो दहिया ने कहा, ‘काम है मेरा, करना ही है….’
दहिया की पत्नी और 2 बेटियां सोनीपत में ही अपने बाकी के परिवार के साथ रहती हैं. मंगलवार सुबह तक उन्हें नहीं पता था कि दहिया एक तरह से सामने खड़ी ‘मौत’ के आगे डटे थे. खुद दहिया बताते हैं, ‘मैंने उन्हें (परिवार) कुछ नहीं बताया लेकिन मेरी तस्वीरे सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. मेरी पत्नी ने मुझे फोन किया. वह बहुत घबराई और चिंतित थी.
मैंने उसके सवालों को टालने की कोशिश की. तस्वीरों में मेरा चेहरा नहीं दिख रहा था, इसके बावजूद वह मेरी जैकिट पर नीली धारियों से मुझे पहचान गई….’
दहिया का ताल्लुक ऐसे परिवार से है, जिसके कई सदस्य सुरक्षा बलों में हैं. उनके पिता इंडियन कोस्ट गार्ड से रिटायर्ड हैं. उनके 2 छोटे भाई हैं. एक उन्हीं की तरह दिल्ली पुलिस में है तो दूसरा कोस्ट गार्ड में.