कारगिल विजय दिवस: आज भारतीय सेना के शौर्य और साहस के प्रतीक ‘कारगिल विजय दिवस’ की 21वीं वर्षगांठ है। 1999 में भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस के दम पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को शिकस्त देकर मातृभूमि की रक्षा की थी।
तब से हर साल 26 जुलाई को ‘कारगिल विजय दिवस’ मनाया जाता है।आज कारगिल विजय दिवस के 21 साल पूरे हो गए हैं 1999 में आज ही के दिन भारतीय सेना ने इस युद्ध में विजय हासिल की थी
आज रक्षा मंत्री, सीडीएस और तीनों सेना के प्रमुख दिल्ली के नेशनल वॉर मेमोरियल में श्रद्धांजलि देंगे 60 दिन तक चले इस युद्ध के बाद 26 जुलाई 1999 को भारत अपनी भूमि पाकिस्तान से खाली कराने में सफल हुआ। इसे ही कारगिल विजय दिवस कहते हैं। और इसकी याद में हर साल पूरा देश गौरव के साथ कारगिल विजय दिवस मनाता है।
21 साल पहले 26 जुलाई को भारतीय सेना ने वो शौर्य और पराक्रम दिखाया था जिसका इतिहास में कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता है दुश्मन ने जिन चोटियों पर कब्जा किया हुआ था, वहां से पाकिस्तान के सैनिकों को मार गिराकर उन पहाड़ों पर कब्जा करना कितना मुश्किल रहा होगा हम और आप सिर्फ अंदाजा ही लगा सकते हैं.
इसीलिए आज के दिन पूरा देश उन अमर जवानों को सलाम कह रहे है जो कारगिल में शहीद हुए थे. देश आज विजय पर्व मना रहा है. कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तान के सैनिकों ने कब्जा कर लिया था. फिर 18 हजार फीट की ऊंचाई पर तिरंगा लहराने के लिए भारतीय सेना के शूरवीरों ने ऑपरेशन विजय का इतिहास रचा।
इतिहास का कारगिल युद्ध
सन 1999 के मई महीने के शुरू में तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के कारगिल जिले में बड़ी संख्या में पाकिस्तानी फौज और उनके आतंकी नियंत्रण रेखा को पार कर भारतीय सीमा में घुस आए और सामरिक महत्व के कई अहम स्थानों टाइगर हिल्स और द्रास सेक्टर की चोटियाें पर कब्जा जमा लिया।
उनका इरादा लेह और लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क को कब्जे में लेने का था। इससे वे सियाचीन ग्लेशियर पर हमारी पकड़ को कमजोर करना चाहते थे। हालांकि इसकी भनक भारतीय पक्ष को देर से लग सकी।
इसके बावजूद भारतीय वीर जवानों ने अपने अटूट हौसलों और अदम्य साहस के साथ मुकाबला करते हुए न केवल पाकिस्तानी फौजों के मंसूबों को नाकाम किया, बल्कि उन चोटियों और रास्तों को फिर से अपने नियंत्रण में करने में सफलता पाई जिन पर पाकिस्तानी फौज ने कब्जा जमा लिया था।
लाहौर में घोषणापत्र पर हस्ताक्षर
पाकिस्तान ने तीन महीने पहले फरवरी 1999 में लाहौर में एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किया था। समझौते पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ ने हस्ताक्षर किये थे। इस समझौते का नाम लाहौर घोषणापत्र रखा गया था।
इसमें यह तय हुआ था कि दोनों देश कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता के द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करेंगे। लेकिन पाकिस्तान ने समझौते को तोड़ते हुए धोखे से भारत में मई में हमला बोल दिया। हालांकि इस हमले में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबे पर पानी फेर दिया।